शाम ढले शायद उसकी आंखें मेरा इंतज़ार करती होगी,
दूंगा मैं दरवाज़े पे शायद दस्तक, शायद वो ये सोचती होगी |
बे बात पे शायद हंस कर, शायद वो आंसूं छुपाती होगी,
शायद खुदा से दुआ मे बस शायद मुझसे एक मुलाकात मांगती होगी |
होगी उसके कपड़ों मे शायद सिलवटें,
शायद मेरे नाम पे शायद उसकी जुबां लडखडाती होगी |
हाथों पे शायद कुछ लिख के, शायद कुछ मिटाती होगी,
शायद मेरी जुदाई की सिहरन मे शायद मेरी कोई ग़ज़ल गुनगुनाती होगी |
Aashish "Joy MadhuKaran"
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